पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/५३

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दो०] उपज्यो तेहि कुल मदमति, सठ कवि केशवदास, 7.. रामचद्र की चद्रिका, भाषा करी प्रकास ।।५।। - सोरह से अट्ठावन, कार्तिक सुदि बुधवार।। रामचद्र की चद्रिका, तब लीन्हों अवतार ॥६॥ राम-महिमा [षट्पद] बोलि न बोल्यो बोल, दयो फिर ताहि न दीन्हों। मारि न मारथो शत्रु, क्रोध मन वृथा न कीन्हों। जुरि न मुरे सग्राम, लोक की लीक न लोपी। दान, सत्य, सम्मान सुयश दिशि विदिशा ओपी। हुन मन लोभ-मोह-मद-काम-वश भये न केशवदास भणि । सोइ पूरब्रह्म श्रीराम है अवतारी अवतार मणि ॥७॥ 65 उप चतुष्पेदी छद ]". जिनको यश-हसा,जगत प्रशसा, मुनिजन-मानस रता। लोचन अनुरूपनि श्याम स्वरूपनि,अजन अ जित सता। 23 कालत्रयदर्शी , निर्गुणपर्शी होत विलब न लागै। तिनके गुण कहिही, सब सुख लहिही पाप पुरातन भागै ॥८॥ दो०] जागति जाकी ज्योति जग एक रूप स्वच्छद । रामचद्र की चद्रिका वरणत हौं बहु छद् ॥९॥ [रोला छन् । का शुभ सूरज-कुल-कलश नृपति दशरथ भये भूपति । by तिनके सुत भये चारि चतुर चितचारु चारुमति । 11