पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/५४

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रामचंद्र भुवचद्र भरत भारत-भुव-भूषण । लक्ष्मण अरु शत्रुघ्न दीह दानव-दल-दूषण ॥१०॥ धित्ता छद ] नाही। सरयू सरिता तट नगर वसे,अवधनाम , यश-धाम धर। अघोघ-विनाशी सब पुरवासी अमरलोक मानहुँ नगर ॥११॥ विश्वामित्र आगमन [ षट्पद] गाधिराज को पुत्र, साधि सब मित्र शत्रु बल । दान कृपान विधान वश्य कीन्हों भुक्मडल । कै मन अपने हाथ, जीति जग इंद्रियगन अति । तप बल) याही देह भये क्षत्रिय ते ऋषिपति। तेहि पुर प्रसिद्ध केशव सुमति काल अतीतागतनि गुनि । तह अद्भुत गति पगु धारियो विश्वामित्र पवित्र मुनि ॥१२॥ सरयू-वर्णन . [प्रज्झटिका छद] पुनि आये सरयू सरित तीर। । तहं देखे उज्ज्वल अमल नीर । नव निरखि निरखि धुति गति गॅभीर। कछु वरणन लागे सुमति धीर ॥ १३॥ अति निपट कुटिल गति यदपि आप । तउ देत शुद्ध गति छुवत आप । ) .