पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/५५

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कछु आपुन अध अध गति चलति । '... फल पतितन कहँ ऊरध फलति ||१४|| मदमत्त यदपि मातग) सग ।' अति तदपि पतितपावन तरंग। बहु , न्हाइ न्हाइ जेहि जल सनेह । २० सब जात स्वर्ग सूकर' सुदेह ॥१५॥ गजशाला-वर्णन [ नवपदी छद | जहँ तहँ लसत महामदमत्त । वर बारन बार न दुला दत्त "अग अग चरचे अति चदन । मुडन भुरके देखिय बदन ॥१६॥ [ दो०] दीह दीह- दिग्गजन के, केशव मनहुँ कुमार। - दीन्हे राजा दशरथहिं, दिगपालन उपहार ॥१७॥ बाग-वर्णन [अरिल्ल छद] देखि बाग अनुराग उपज्जिय। . बोलत कलध्वनि कोकिल सज्जिय । । । राजति रति की सखी, सुवेषनि । ., मनहुँ बहति , मनमथ सदेशनि ॥१८॥ (१) सूकर = सुअर, सुकर्म करनेवाले । (२) दत्त = दलने मे (३) बदन = रोली। -