पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/७१

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( २१ ) " [तोमर छंद ] चहुँभाग बाग तडाग । अब देखिएं बडभाग ॥ . 1 फल फूल से सयुक्त । अलि यो रमै जनु मुक्त ॥९७ रामचद्र-दो०] ते न नगरिं. ना नागरी, प्रतिपद हसक हीन 5 जलज़हार शोभित न जहँ, प्रगट पयोधर पीन ॥९८ [सवैया ] . सातहु दीपन के अवनीपति हारि रहे जिय मे जब जाने । बीस बिसे व्रत भग भयो, सो कहो, अब, केशव, को धनु ताने ? शोक की आगि लगी परिपूरण आइ गये घनश्याम बिहाने ।, जानकि के जनकादिक के सब फूलि उठे तरुपुण्य पुराने ॥९९॥ विश्वामित्र और जनक की भेंट .. . [ दोधक छद] आइ गये ऋषिराजहिं लीने । मुख्य सतान द विप्र प्रवीने । देखि दुवौ भये पॉयनि लीने । आशिष शीरपबासु लै दीने ॥१००/ विश्वामित्र- . . [ सवैया ] केशव ये मिथिलाधिप है जग मे जिन कीरतिबेलि. बयी है। दानकृपान-विधानन से सिगरी वसुधा जिन हाथ लयी है। । (अग छ सातक आठक सो भवतीनिहु लोक में सिद्धि भयी है ।। वेदत्रयी अरु राजसिरी, परिपूरणता शुभ योगमयी है ॥१०१॥ । (१) बीमविसे = बीसों बिस्वा, निश्चय । (२) छ: अग-(वेदाग) शिक्षा, कल्प, व्याकरण, ज्योतिप, निरुक्त, छद । सात अग-(राजनीति के) राजा, मत्री, मित्र, कोष, देश, दुग, सेना । अाँट अग-(अष्टागयोग) यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान, धारणा, समाधि ।।