पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/७४

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( २४ ) .. [ तार छद] रघुनाथ शरासन चाहत देख्यो । अति दुष्कर राजसमाजनि लेख्यो । जनक-ऋषि है वह मदिर माँझ मँगाऊँ । गहि ल्यावहि हैं। जनयूथ बुलाऊँ ॥११२॥ [दडक छद] बन ते कठोर है, कैलाश ते विशाल, काल- दड ते कराल, सब काल काल गावई। - केशव त्रिलोक के विलोक हारे देव सब, छोड चद्रचूड़ एक और को चढ़ावई ? पन्नग प्रचड पति प्रभु की पनच पीन, ... पर्वतारि-पर्वत-प्रभा न मान पावई। 51.. "विनायक एकहू पै आवै न पिनाक ताहि १ कोमल . कमलपाणि.-राम कैसे ल्यावई ॥११॥ [तोमर] " विश्वामित्र-सुनि रामचद्र कुमार । धनु आनिए यहि बार ॥ पुनि बेगि ताहि चढ़ाव । यश लोक लोक बढ़ाव ॥११४॥ धनुष-भंग दो०] ऋषिहि देखि हरव्या हियो, राम देखि कुम्हलाइ। . / धनुप देखि डरपै महा, चिंता चित्त डोलाइ ॥११५।। (१) पर्वतारि-पर्वत-प्रभा = सुमेरु पर्वत की आभा। सुमेरु -देवताओं का पर्वत माना जाता है और इंद्र (पर्वतारि) देवताओं का राजा है।