पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/७६

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[ तोमर]

सतान द-सुनु राजराज विदेह । जब हौं गयो वहि गेह । कछु मै न जानी बात । कब तोरियो धनु तात ॥१२०॥ [ दो०] सीताजू रघुनाथ का, अमल कमल की माल । - पहिराई जनु सबन की, हृदयावलि भूपाल ।।१२१॥ [चित्रपदा छद] । तीय जहीं पहिरायी । रामाह माल सुहायी। दुदुभि .. देव बजाये । फूल तहीं बरसाये ॥१२२।। 6) बरात आगमन [ दो० ] पठई तबहीं लगन लिखि, अवधपुरी सब बात । राजा दशरथ सुनतहीं, चाह्यो चली बरात ।।१२३।। ' [ मोटनक छंद] आये दशरथ बरात सजे । दिगपाल गयंदनि देखि लजे । चारयो दल दूलह चारु बने । मोहे सुर औरनि कौन गनै ॥१२४॥ [तारक छद] बनि चारि बरात चहूँ दिशि आयी। नृप चारि चमू अगवान पठायी ॥ जनु सागर को सरिता पगु धारी। तिनके मिलिबे कहं बाहं पसारी ॥१२५।। . दो०] बारोठे' को चार करि, कहि केशव अनुरूप । द्विज दूलह पहिराइयो, पहिराए सब भूप ॥१२६।। (१) बारोठे ( द्वारकोष्ठ ) को चार = द्वारपूजा ।,