पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/७७

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[त्रिभंगी छद] दशरत्य सँघाती सकल बगती बनि बनि मडप माह गये । आकाश विलासी प्रभा प्रकाशी जलज गुच्छ जनु नखत नये । अति मुदर नारी सब सुखकारी मगल गारी देन लगीं। बाजे बहु बाजत जनु घन गाजत जहाँ तहाँ शुभ शोभ जगीं ॥१२७।। दो०-रामचद्र सीता महित, शोभत है तेहि ठौर । सुवरणमय मणिमय खचित, शुभ सुदर सिर मौर ।।१२८।। विवाह [ पट्पद] बैठे मागध सूत विविध विद्याधर चारण । केशवदास प्रसिद्ध सिद्ध शुभ अशुभनिवारण । भरद्वाज जावालि अत्रि गौतम कश्यप मुनि । विश्व मित्र पवित्र , चित्र मति वामदेव पुनि । . सब भांति प्रतिष्ठित निप्टमति तहँ वसिष्ट पूजत कलश । शुभ शनानद मिलि उच्चरत शाखोच्चार सबै सरस ॥१२९।। [अनुकूल छंद] पावक पूज्यो ममिव सुधारी। . . . पाति दीनी मय सुग्वकारी। है तब कन्या बहु धन दीन्हों। भर्भावरि पारि जगत यश लीन्हों ।।१३०॥