पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/८०

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( ३० ) भागीरथी हुतिय अति पावन बावन ते अति पावनतायी। त्यों निमिवश बडोई हुतो भइ सीय सँयोग बड़ीये बडाई ॥१४१ [दो०] पूजि राज ऋषि ब्रह्म ऋष, दु दुभि दीन्ह बजाइ। जनक कनक-मंदिर गये, गुरु समेत सुख पाइ ॥१४२। जेवनार [चामर छर] आसमुद्र के छितीश और जाति को गने । राजभौन भोज को सबै जने गये बने । भाँति भॉति अन्नपान व्यजनादि जेवहीं। " देत नारि गारि पूरि भूरि भूरि भेवहीं॥१४३।। [हरिगीत छद] ( अब गारिक्ष तुम कहँ देहि हम कहि कहा दूलह रामजू । कछु बाप प्रिय परदार सुनियत करी कहत कुबाम' जू । को गनै कितने पुरुष कीन्हे कहत सब ससार जू । सुनि कुँवर चित दै.बरणि ताको कहिय सब ब्यौहार जू ।।१४४|| बहु रूप से नवयोवना बहु रनमय बपु मानिए । पुनि वसन रत्नाकर बन्यो अति चित्त चचल जानिए । सुभ सेष फन मनिमाल- पलिका परति करति प्रबध जू । . करि सीस पच्छिम, पॉय पूरव गाते सहज सुगध जू ॥१४॥

  • कहते हैं कि केशवदास के कहने से यह 'गारी प्रवीणराय

पातुरी ने बना दी थी। (१) कुबाम = बुरी स्त्रो, (कु) पृथ्वो रूम स्त्रो।