पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/८३

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( ३३ ) सुखमुख मडल चित्तनि मोहै। . मनहुँ अनेक कलानिधि सोहै ॥१५५॥ भृकुटि विलास प्रकाशित देखे । धनुष मनोज मनोमय लेखे। .. - चरचित, हास् चद्रिकनि मानो। । सुखमुख वासनि वासित जानो ॥१५६।। अमल कपोलै आरसी, बाहू चपक मार। अवलोकनै विलोकिए, मृगमद मय घनसार ।।१५७।। पलकाचार [सवैया ] में बैठे जराय जरे पलिका पर रामसिया सबको मन मोहैं। ज्योति-समूह रहे मढ़िक, सुर भूलि रहे, बपुरे नर को हैं ? केशव तीनिहुँ लोकन की अवलोकि वृथा उपमा कवि टोहैं। शोभन सूरजमडल मॉझ मनौ कमला-कमलापति सोहैं ॥१५॥ राम का शिखनख [दो०] गगाजल' की पाग सिर, सोहत श्रीरघुनाथ। ... शिव सिर गगाजल किधौं, चद्र चद्रिका साथ ॥१५९॥ र [तोमर छद] - - - कछु भृकुटि कुटिल सुवेश । अति अमल सुमिल सुदेश । । विधि लिख्यो सोधि सुतत्र । जनु जया-जय के मत्र ॥१६०॥ C (१) मृगमद = कस्तूरी। (२) गगाजल = एक प्रकार का कपड़ा।