( ४२ ) हैहय मारे, नृपति सँहारे सो जस लै किन जुग जुग जीजै ॥ १९५॥' [नाराच छद परशुराम-भली कही भरत्थ तैं उठाय आगि अग ते । - चढ़ाउ चोपि चाप आप बाण ले निखग ते ॥ प्रभाउ आपना देखाउ छोड़ि बाल भाइ कै। रिझाउ राजपुत्र मोहिं राम लै छुडाइ कै ॥१९६॥ [स०] लियो चाप जब हाथ, तीनिहु भैयन रोस करि । बरज्यौ श्री रघुनाथ, तुम बालक जानत कहा ? ॥१९७॥ [दा०] भगवतन सा जीतिए, कबहुँ न कीने शक्ति । जीतिय एकै बात ते, केवल कीने भक्ति ॥१९८॥ [हरिगीत छ द] जब यो हैहयराज इन बिन छत्र छितिमडल कर्यो । गिरि बेधि', खटमुख जीति, तारक-नद को जब ज्यौ हर्यो । (१) महादेवजी मे शस्त्र-विद्या सीखकर जब परशुराम कैलास से नीचे उतरे तो अपनी बाण-विद्या की परीक्षा के उद्देश्य से हिमालय की एक शाखा पर बाण मारे जिससे पहाड़ फटकर घाटी बन गई । इसी घाटी का कालिदास ने क्रौंचरंध्र कहा है-हसद्वार भृगुपतियशोवर्म यत्क्रौंचरभ्रम् ( मेघदूत, पू० ५७ )। कहते हैं, हस इसी रास्ते से आते- जाते हैं। (२) खटमुख ( षण्मुख ) = स्वामी कार्तिकेय । तारकासुर जब बहुत प्रबल हुआ तो देवताओं ने महादेवजी की स्तुति की। उन्हीं के वीर्य से उत्पन्न व्यक्ति के हाथ से तारकासुर मारा जा सकता था। महादेवजी ने प्रसन्न होकर अग्नि को अपना तेज प्रदान किया।