गमस्वयंवर। यहि विधि भाषत मुनिन के, कोउ पुरबासी जाय । जाहिर कियो बिदेह को, गाधितुअन गे आय ॥४६४॥ विश्वामित्र मुनीस को, सुनि आगम मिथिलेन । सतानंद को बोलि द्रुत, चले मिलन लुभ भेस ॥४६५॥ (छंद चौधोला) सतानंद आगे करि लीन्ह्यो द्विज-मंडली सोहाई। ' पढ़त वेद वैदिक धरनीसुर जय धुनि चहुं कित छाई ॥ चलत पयादे मुनि दरसन हित सथै सराहत लोग। मिलन जात मनु ब्रह्म सतोगुण करि विराग भव भोगूग४६६॥ आवत देखि विदेह भूपको मुनिजन देखन धाये। आय आय कौशिक मुनि के ढिग सुखित समाज लगाये ॥ आवत जानि भूप को कौशिक है मुनि तुरत पठाये । ते निमिकुल भूपति को कर गहि मुनिनायक ढिग ल्याये । विश्वामित्रहिं भूप बिलोकन कीन्यो दंड प्रणामा । कौशिक धाय उठाय लाय उर आमिष दियो ललामा ॥ दै आसन बैठाइ भूए को अति सत्कारि मुनीमा । सादर कुसल प्रश्न पूछयो पुनि मोदिन अहहु महोसामा४६८॥ तब कर जोरि कह्यो मिथिलापति कुसल कृपा तुव नाथा । कोन्ही पावन पुरी मागे अब मैं भयो सनाथा॥ "सैन-सहोदर-सचिन-सहित प्रभु सब बिधि कुसल हमारी। सफल भयो मम धनुषयज्ञ अव करी कृपा मुनि भारी॥'
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