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पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/१११

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रामस्वयंबर। मालती सुमन मनु तारा हैं। घदन कुरंगन के विविध विहंगन के मुखन मतंगन तुरंगन फुहारा है। केते कुंज- भौन लताभीन लोने लोने लसैं बल्लिन पितान त्यों निसानहू अपारा हैं। भनै रघुराज नवपल्लवित मल्लिका के अमल अगारा हैं मुनारा हैं दुआरा हैं ॥५३०॥ [छंद गीतिका ] चर बाग मध्य तड़ाग चारिहु भाग फनक सुपान हैं। मनि सरिस निर्मल नीर परम गंभीर गगन समान हैं। फूले कमल कल अमल भल मकरंद मधुप लोभान हैं। कल्हार इंदीवर सुउत्पल पुंडरीक अमान हैं ॥५३१॥ सर निकट गिरिजाभवन राजन कनक मंडित सुंदरै। मरकत कलस बिलसत बिमल दिनकर वसत मनु मंदरै॥ बहु रत्न खचित प्रदेस मंदिर बने बेस सुहावने । चहुँ ओर विलसत कनकखंभ सुरंभ थंभ लजावने ॥५३२॥ बहु द्वार छजो छजित फाबित फटिक फरस अपार हैं। आवरन देवनरूप वेद विधान विविध अगार हैं। नहिं पुरुष तह कोउ जात माली रहत इक विश्वास को। सब नारि रच्छन करहिं उपवन तरु तडाग अवास को ॥५३३॥ [सवैया] एहो महीपति-माली सुनो गुरु पूजन के हित फूल उतारन । आये इतै हम बंधु समेत उतारै प्रसून जो होइ न पारन ॥ कैसे कहे विन फूल चुनै मिथिलेस की बाटिका के मन