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पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/११३

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रामस्वयंबर। BUA (कवित्त) दासी संग खासी छवि-रासी चपलासी चारु आनंद विभासो रनिवास की निवासिनी । चंद्र चंद्रिकासी लसै कमला कलासी कल कनक लतासी सबै सोय की सुपासिनी ॥ भने रघुगम सिय-प्रेम की पियासी रहै सर्वदा हुलासी जे प्रकासी मंद हासिनी । रतिसी सुरंभासी तिलोत्तमासी मैनकासी मायासी मयासी मंजु मिथिला-मवासिनी ॥ ५४१ ॥ (छंद हरिगीतिका) गिरिजा भवन आराम आई नवलि निमिकुल चंदिनी । अनयास होत हुलास पुरिहै आस हिमगिरि-नंदनी ॥ . मिथिलेसजू की लाडिली-मागमन गुनि तह मालिनी । हरयर चली भरभर सकल सजि बसन रूप रसालिनो॥ (सोरठा) तह घहु वाजन सोर झनकारी नूपुरन की। रही माचि चहुँ ओर दियो मदन मनु दुंदुभी ॥ ५४३ ।। स्यामल राजकिसोर कायो लषन सी वैन पर । लखहु लाल यहि ओर आवत इत मिथिलेस धौं । ५४४ ॥ (सवैया) बाजि रहे वाहु बालन बेस सुभावतसी बाड़ भीर जनाई ।। • देखन नेसुक नयननि नेरे चली वहि ओर कचनियराई ।। फूलन तोरि चूके भरि दोनन कौतुक देखि गुरू पहँ जाई। श्रीरघुराज सवै कहि देव महामुनि सो करिकै सेवकाई ६५४५॥