पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/११६

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१०० रामस्वयंवर । श्री को जथा श्री अहै सिय मेरी तथा यह सांचौगारगागे। कीरति की जिमि कीरति जानकी त्योंजस कोजसयाहि निहारी वा छवि की छविया सुखको सुख जोरी भली विरची करता याउनके सम वा इनके सम श्रीरघुराज न और विचारो ॥५५॥ (वरवै) नयना बानन मारेउ राजकुमार । कैसे जाउँ सिया जहै गौरि-अगार ॥ ५६० । मालिनि तिहि कर कर करि चली लिवाइ । कहुँ बिहसति कहुँ हुलसति कहुँ विलखाइ ॥ ५६२ ।। यहि बिधि भ्रमत भ्रमत सो मन पछिताति । आई जहां सहेली अति अकुलाति ॥ ५६२ ॥ (दोहा) तासु रूप निरखी सखी, अति बिबरन तनु स्वेद । पकरि पानि पूछन लगो, भयो काह तुहि खेद ॥५६शा (सवैया) 'एरी अली तुहि फैसो भयो नहिं पूछेहु पै कछु उत्तर देती। आनंद भीजी सनेह में सीझी चितै कछु पाछे उसासन लेती ।। - श्रीरघुराज कहे कह रोझी भई तनु लोझो अजौ दसा एती। काह लखी अरु काह चखी सखी वेगि बताउ दुराउ न हेती ॥ (दोहा) सखी सखिन के वचन सुनि, लखी पाछिले ओर। मन पियूष फल से चखी, कही गिरा रस बोर ॥५६५॥