पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/११७

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रामस्वयबर। (कवित्त) पूछती कहा है उतै कौतुक महा है नहिं जात सो कहा है अब जौन लखि पाईरी ॥ विधि के सँवारे राजकुँवर पधारे प्यारे विश्वमनहारे धारे विश्व सुंदराई री ॥ सांवरी सलोना दूजो दुति को दिमागवारी दूग ते टरै न टारो मति अकुलाई री॥ कहे ना मिराई रघुराज देखे नि आई भाजुलौं न देखी जौन आजु देखि आई री ॥ ५६६ ॥ नीलमनि मंजुताई, नारद को स्यामताई, अतसी कुसुम कामलाई हठि आई है । केसर सुगंधताई, विज्जु दीपताई सान जुही नहिं पाई पर पोत पियराई है ॥ भौंहम कमान कसि प्रीति खरसान चोखे नैन-- वान मारे फूटि गांसी अटकाई है। रघुराज कैसो राजकुवर अनोखो अरी हौं तौ इतै घायल है धूमि घूमि आई है ॥ ५६७॥ (दोहा) ऐसे सुनि सजनी-बचन देखि दसा पुनि तासु । उदित इंदु अमिलाप हिय किया हुलास प्रकारतु ॥५६८॥ [चौपाई] सिय समीप इक सखी सिधारी । वीजमंत्र सम दियो उवारी॥ सिय सुनिसखी बचन सुख पाई | मंद मंद मन महँ मुसक्याई ।। पृजि गौरि मिथिलेस-दुलारी । मंदिर ते पाहर पगु धारी ।। कहत भई मिथिलेसकुमारी । कहु कौतुक तू कौन निहारी॥ सोसंखिसियं छवि नखसिख हेरी।सुधिं करि राजकुंवर छविदेरी। बहुरि बाल वाली बर वानी। बुधि बर बदति रिसेपि ...