पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/११९

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रामस्वयंवर। मंद मंद गमनति सुकुमारी। चतुर सखी सब संग सिधारी। उतै सुन्योनूपुर धुनि जवहीं। लख्या लषनलाखन सखि तवहीं । बन बिहरन आचैं सखि वृंदा। मानहु उये अनेकन चंदा । लपन-बचन सुनि सहज सुभायकालताभवन ते कढ़ि रघुनायका सिय मन कोगति गुनिरघुनाथा खिड़े लपन कंधहि धरि हाथा । हेरत हती उतै सिय रामै । इत रघुपति सिय लोक ललामै ॥ (सवैया) दोहन की रही भीति सनातन दाह तहां पलक दूग त्यागे। बैगो वियोग का दिन दोहुन देवन-कोरज में अनुरागे ॥ • वे प्रगटे अवधेस के मंदिर वो मिथिलेस किये घड़भागे। दोहुन के द्वग दोहुन में परिदोहुन की छवि पीवन लागे ॥५८२॥ कौन कहै सिय नेह की नीति प्रतीति त्यों प्रीति की पूरनताई। श्रीरघुनायक आनन ईदु में नैन लगाइ चकोर लजाई ॥ श्रीरघुराज सुकोटिन बार निछावरि चातक-मेह मिताई । मानौ लजाइ पराइ गये निमि त्यागि द्वगंचलचंचलताई ॥२८॥ पूरब पूरन इंदु उदै लहि ज्यों विकसे विलसैं कुमुदाली। ज्यो पुनि पूषन प्रात प्रकासहि पाइ प्रफुल्लित है कमलाली । श्रीरघुराज को आनन त्यों ललनानि के आनन में करी लाली। देखें जकी लसी रूपको माधुरी चित्र की पूतरी सीसप माली|| (दोहा) जनकलली अनिमिष चितै स्यामल राजकुमार । धरयो ध्यान मोलित दुगनि ठाढ़ी गहि तरु-डार ॥ ५८५ ॥ .