पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/१२०

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२०४ रामस्वयंवर। ( सवैया) देर भई गहि साख तमाल की ठाढ़ी अहै पग पोर न जावै । ध्यान धरे गिरिजा बपु को मिथिलेसलली तू त्या छन खेोवै॥ "पूजन कीजै यहोरि उतै चलि मांगियो जो मन में कर्छ हावै ।। देखिले सांवरी राजकुमार खरी रघुराज महा मुद मोवै । (दोहा) सखी वचन सुनि सकुनि तिय दीन्ह्यो द्वगन उघारि । सन्मुख ठाढ़े कुँवर लखि करी महि बलिहारि ॥५८७॥ (सोरठा) मन मह करति विचार परी प्रेम परबस लिया । चलति नयन जलधार चंद्रकला बोली वचन ॥५८८॥ वचन सयुक्ति बनाय सीतहि सरस सुनाइकै । मधुर अली इत बाय सुनै कछुक चाहति कहन ॥५८६॥ (सवैया ) हो दिलंब खड़ी इनही अब अंब गये विन सोप करेगी। पूजन बाकी है जगदंब को लंब भये रति बेला टरैगी। 'श्रीरघुराज निहारि लई मन की उपजी नहि फेर फिरेगी। आउय काल्हि यही वेरियाँ इन गौरि-कृपा सब पूरी परैगी में (दोहा) अस कहि सखि मुसक्याय मृदु नयन नचाय नवाय । सियहि चितै चितई सखिन राजकुंधर दरसाय.॥५६॥