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पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/१२६

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११८ रामस्वयबर लक्ष्मीनिधितिन जायं वुलावन । आवहि राजकुंअरमनभावन ।। सुनि विदेह बोले हरपाई भलो सिखापन दिय ऋषिराई। पुनि बोल्यो लक्ष्मीनिधिकाहों । आयो कुवर तुरंत तहांहीं । फ़हो विदेह जाहु तुम ताता । मानहु अवध कुंबर अवदाता। जह अवधेल कुमार उदारा आयो लक्ष्मीनिधि सुकुमारा। पूछि परस्पर तिन कुसलाई । लक्ष्मीनिधि वोल्यो सिरनाई। रंगभूमि आये सब राजा । भगिनिस्वयंवर होत दराजा ॥ आप पधारहु पिता वुलाये । हय गय रश वाहन पठवाये। प्रभु कह जयते गुरु सँग लागे । हय गय रथ वाहन सरत्यागे। कौशिक सिष्य को पुनि आई । राजकुंवर बोल्यो मुनिराई । शुरु सासन सुनिदाउरघुराजा।चले सहित सबमुनिन समाजात विश्वामित्राहि उतै विदेह । कयौ नाय सिर सहित सनेह ॥ यह कोदंड विरचि करतारा। दीन्ह्यो हरकह जोग विचारा. (दोहा) पूर्व पुरुष यक मम भये देवरात महराज । धरवायो हर तिन भवन साइ धनुप गुनि काज ॥ ६४४ ॥ (चौपाई) जब प्रगटी सीता सुकुमारी । मैं राख्यों निजभवन कुमारी॥ धरयो धनुष जहं तहँइक कालें।मैं बुलाय भाष्यों सिय बालैं ।। पूजन हेत .पखार कुमारी । मैं नहाइ आवतो सिधारी ॥ . अस कहि मजन करि जब आयो।कौतुक देखि महाभ्रम छायो । धनु उठाइ बायें कर सीता । घरयो और थल परम पुनीता।