पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/१३९

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१२३ रामस्वयंबर।। अब देहु आयसु जानकी जयमाल मेले जाय ! पुनि अवधपुर ते आसुही लीजै घरात बुलाय॥ सुनि बचन कौसिक के विमल नृप सतानंदहि आनि । जयमाल-हित सासन दियो अवसर सुखद जिय जानि॥ (दोहा) सतानंद आनंद भरि गये तुरत रनिवासु । को जानकीजननि सो अव कीजे अस आसु ।। ७१४॥ सजि सँगार गावत मधुर संग सहस्रन बाल। सियहि पठाबहु राम के मेलै गल जयमाल ।। ७१५ ॥ (चौपाई) घली जानको लै जयमाला । पहिरावन को दसरथ लाला ॥ साहहिं सुंदरि संग इजारन । सुरदारन सम किये टैंगारत। महा भीर सव राज-समाज्ञा । खैरभैर मचि रह्यो दराजा॥ कुमतिकुपतिसमतिकरिलीन्हें । सियहिनत्यागवविनजुधकोन्ह।। अस सुधि पाय सुनैना रानी । सायुध पठई सखिन सयानी ॥ बल्लम कुत कटार कृपानी । कसे नारि कम्मर मरदानी।। डरपे कुमति कुपति अविवेकी । टरिगे टारि टेक जो टेकी॥ बाहिर जाय जूय सब बाँधे । रन हित आयुध कांधन काँधे ।' सुनत जनक भूपन उत्कर्षा । कियो हर्ष मह परम अमर्षा ॥ चतुरंगिनी सैन्य सजवाई । दियो द्वार मह ठाढ कराई ।।. इतै सखीन समाज पुनीता। आई रंगभूमि मैंह सीता। मानहु संग सक्ति समुदाई । कढि कमला छीरधि ते आई ॥.