पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/१५१

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रामस्वयंवर। पुनि ग्नंधीर भीर प्यादन की सायुध चली अपारा। चपकहि तेग अनी कुत्तन की सिंधु तरंग अकारा॥ रथमंडल पीछे पुनि सोहत परिकर भूपति करो। फनलदंड कर जड़ित हजारन रत्नन होत उजेरो 1000 हारक के छोटे सोंटे कर पंचानन आनन के। । धरे कंघ सोहत अति सुंदर अवध जनन ज्यानन के॥ सोहत बल्लम विविध प्रकारन छरी हजारन हाया। पीत बरन पहिरे पट भूपन चले जात प्रभु साथा ॥८०१॥ जुग स्यंदन सवार सोहत तहँ दिगस्यंदन मुनिराई । मन देवनायक सँग सेहत वाचस्पति सुखछाई । चारि चमर बहुंओर विराजे छत्र छपाकर छाजे। अंसुमान इव आतपत्र जुग बितद विजन बहु भ्राजै ।।८०२० कोमलपति पीछे पुनि गमनत राजत गज निषादा। लीन्हें भीर निपाद भटन की हय चढ़ि विगत विषादा।। यहि बिधि चली बरात जनकपुर, अवध नगर ते भारी। कुसल कहहि लखि रामलपन को पूजी आस हमारी॥८०३॥ (छंद गोतिका) "धाजन अनेकन वाजहीं दस दिसन छाय अवाजः . तंवर ढोलहु ढक डिडिम.पनव पदह दराज ॥ . . मंजीर मुरम उपंग वेनु मृदंग सलिल तरंग। वाजत विमाल कहाल त्यों करनाल तालन संग ॥८॥ बंदी विदृपक बदत बहु विधि सुजस जुक्ति समेत :::