पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/१५२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रामस्वयंवर। यह भानुकुल कीरति उदय जो स्वाति पंथ सपेत । जब कढ़ी कोखल नगर ते मैदान माहि बरात। तव भो देवन भोर मानहुँ सिंधु द्वितिय दिखात 1८०५० (छंद कामरूप) 'अब आज अधिक न जात बनत मुकाम सरजू तीर। यह पहिल बाल सुपास सब कह जाई जुरि संघ भीर ॥ अस कहि विदा करि सचिव कह पुनि कह्यो गुरु पहँ भूप। यह साहियो मन ल्याइची निज कृपा फल अनुरूप ॥८०६॥ देखहु सकुन लव होत सुंदर सुभ जनावत जात । दिसि बाम चारा नीलकंठ विहंग लेत दिखात ॥ फरकाहि नृकुटि भुज नयनदच्छिन दिसत अधिक अनंद । अचरज न कछु जहें आप मंगल रूप करुनाकंद ॥८०७० अवधेस के मुंनि वैन लहि अति चैन मृदु मुसक्याय । पुलकित सजल दृग कंठ गद्गद कहत मे मुनिराय । • 'धनि धरा में अवधेस तुम जिहि राम लपन कुमार। • भल करहि अपने ते अमर मंगल प्रमोद अपार १८०८० जस आप तस मिथिलेस जल मिथिलेस तस पुनि पापा नहिं तृतिय याज समान को यह सत्य मम संलाप' मुनि भूप के अस करत संभावन खड़े मग माई। आये बहोरि विसैप सरजू तौर सहित उमाह १८०६] डेरा सुमंत दिवायें सबको सहित सुथल मुपास। भोजन सफल पहुँचाय सब कह ज्ञाय जाय निवास।