पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/१५३

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रामस्वयंबर। 'उज्यालि लाखन दीपिका निज नयन सप कह देखि। आयो महीपतिमनि निकट विनती करी सुख लेखि ॥८१०॥ (दोहा ) महाराज सबको भयो साजू तीर सुपाल। - नाथ पधारा सिविर कह कीजै रैन निवास ॥८११॥ (छंद गीतिका) सुनि सचिव पचन अनंददायक सहित गुरु महिपाल। . "करि भरथ भरतानुजहि आगे गयो सिविर विसाल ॥ सब सैन्य डेरा परे सरजू तीर तीरहि भीर। जुग योजनहि लौं संधि नहि कढ़ि जाय मारी तीर ८१२॥ यहि भांति सुखमा निसि सिरानी रही वाकी जाम । बाजी नृपति की दुदुभी द्रुत कूच-सूचक आम ॥ लागे बदन बंदी विविध बिरुदावली नृपद्वार । मन जानि आगम भानु को उठि वैठ भूभरतार ॥८१२॥ सब प्रातकृत्य निवाहि मज्जन कियो सज्जन संग। लहि. काल संध्योपासनादिक ठानि सुमिरन रंग। तिहि काल सचिव विदेह के कीन्हें सुवंदन आय । . करि बचन रचन विसेपि.बिनती दिया नृाहि सुनाय ८१४॥ अवधेस हमहि निदेस अस मिथिलेस दीन बुलाय।... जय ने चलहिं कोसल नगा ते कोसलेस त्वराय॥ ... तब ते सुभोजन पान सामग्री दियो तुम जाय । जो लगै खर्च बरात को सो लिह्यो सकल उठाय ॥८१५॥