पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/१५५

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रामस्वयंवर १३९ बैठो बहुरि अवधेस आलै संमा सुखद लगायकै ॥ . . पुनि कह्यो सचिव सुमंत कालिह कहाँ अराम मुकाम है। 'नृप कयो जहँ जहं जनक सेवा कहहिं तहँ बिस्राम है।। ८२०॥ "सुंनिकै समासद अभिलपित निज निज अयन गमनन भये। भूपति सभा बरखास करि क्रिय सयन अति आनंदमये ॥ वीती त्रियामा जाम त्रय याकी रह्यो जब जाम है। बाजे नगारे कूच के जनु जलद जागन काम है ॥८२१॥ (छंद चौवाला) उतै दूत जे गये अवधपुर लै विदेह की पाती। जोरि पानि कीन्हें पदवंदन आय तीसरी राती ॥ दूत विलोकि विदेह विनादित कहे कुसल सब आये। कहह कुसल कोसल-भुआल की कव पेहैं सुख छाये ॥२२॥ दूतन कही खबरि तह की सब नप रनिवास उराऊ।

प्रीति रीति पुनि लै बरात को बरन्यो चलनि त्वराऊ॥

पुहमीपति यहि पुरहि पहुँचिहैं परसों सहित बगता। कही प्रणाम आपको बहु विधि दशरथ विस्वविख्याता॥८२३॥ प्रथम बास:सरजू तट है। दूसर गंडकि तीरा। तृतीय वास इतते जुग जोजन परौं मिलन मतिधीरा॥ आवन सुनत अयोध्याधिप की प्रेम मगन मिथिलेसू। . : अगुवानी साजन के कारन सचिवन दियो निदेसू ॥२४॥ इतै वरात वली रघुकुल की रामदरस अभिलापी: .. लपन: राम को लखव काल्हि हम चले परस्पर भाषी..