‘रामस्वयंवर। हम अरु गुरु मधि में रहय अब जुग राजकुमार ॥८३६॥:- सासन पाय सुमंत तह तैसहि सैन्य बनाय । : - : मिथिला ओरहि सीघ्र गति, दिया बरात चलाय ॥३७॥ (छंद चौवोला) .. . जोजन अर्ध गई जब सैना द्वितिया चंद्र अकारा।' देखा देखी उभय सैन्य की होत भई तिहि वारा॥ जैसा व्यूह बनाय अवधपति चले मिलन के काजा। , तैलो व्यूह वनाय चल्यो उतते मिथिला.महाराजा ॥८३८॥ इतते महा महोदधि जावत उत रत्नाकर आयो। मानहु मिलत उमडिसिंधुजुग कोलाहल छिति छायो जवते भई लैन्य की देखादेखी दूरहि ते रे । तयते भये मंदगति दोउ दल इक एकन के हेरे ॥८३६॥ द्वितिया चंद सरिस दोऊ दल ताते प्रथम सिधारी। मिले कोन सों कोन चारिहूँ तब मंडल भी भारी॥ भूमंडल समसजी सैन्य मिलिनिमिकुल रघुकुलवारी। इत कोसलपति मिथिलापति को को बड़ छोट उचारी ||८४०॥ किये परस्पर अभिवंदन सव जथा जोग व्यवहारा: मुदित बराती जथा घरातो पूछि कुसल बहु चारा॥ प्रतीहार कहि फरक फरक तह किये कछुक मैदाना । : .. इतते कोसलपाल गयो तह उत मिथिलेस महाना ॥८४१॥ गुरु वशिष्ठ अरु सतानंद मुनि भरत सत्रुहन दाऊ। चढ़यो तुरंत कुगर लक्ष्मीनिधिआय गयो तहँ साऊ॥
पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/१५८
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