पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/१७१

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रामस्वयंवर। १५६ लगे फरोक्न पावन चारा । बालि चारितु राजकुमारा॥ नेपल पीतपट भूपन नाना। विप्रकुमारी करि परिधाना। लै हरिद्र दुर्गा तिहि चेला। प्रभु कहँ लगीं चढ़ावन तेला ॥ (छंद चौवाला) सिर कंधन जानुनी पगन मह फेरदि पानि कुमारी। 'मनहुँ पूजि ससि नीलरतगिरि उतरहिं कुमुद सुखारी॥ विश्वामित्र वशिष्ठ राम को दिए तेल चढ़वाई। भए अनंदित सकल वराती चहुं धन दियो लुटाई ||९१६॥ चारिकुमारन को भूपति पुनि अपने निकट बुलाए । गुरु वशिष्ठ गोदान करन को सविधि अरंभ कराए। धेनु-दान करवाय कुमारन इक सिंहासन माही । चैट्यो लै पुत्रन कोशलपति बरनि जाय सुख नाहीं ॥२०॥ तिहि अवसर धावन द्वै आये कहे जारि जुग पानी । केकय महाराज को नंदन नाम युधाजित जानी ।। मावत काशमीर-नपनंदन आगे हमहि पठाए । खबरि देन हित रामराजमनि हम आये अतुराए ॥१२॥ सुनि भागमन युधाजित को तब कोशलपति हरषाए । तिहि अगवानी करन भरत रिपुसूदन को पठवाए। .कछुक दूर ते भरत जाय निज मातुल को लै आये। जाहि युधाजित अवधनाथ को बार बार सिर नाये ॥२२॥ • उठ्यो भूप सादरताको मिलिंदै आसन अनुरूपा। कह्यो युधाजित से कुसली हैं कुलजुत केकय भूपा।