पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/१७८

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रामस्वयंवर। "मिले बरोवरि भूपति दोऊ । जयजयकार किये सब कोऊ ॥ तह वशिष्ठ दूलह यक ओरे । वैठाये आसन इक ठौरे ॥ (दोहा) - शीरध्वजा निमिॉलकमल, कुशध्वज ताको भ्रात। भवनं ओर बैठत भये, इक श्रासन अवदात ॥१६२॥ - (चौपाई) लगी गवाच्छन में सुखलानी । दूलह देखि सुनैना रानी || सिद्धि नाम लक्ष्मीनिधि रमनी । जनक- पतोहुचमा छघि छमनी॥ मंजुल वाजत बंजन अपारा | गायरही सुर नर-मुनि-दारा॥ लाग्यो हान द्वार कर चारा । कियो चेद-विधि मुनिन उचारा। पूजन भयो जीन तिहि देशू । लिय प्रत्यच्छ है गौरि गणेशू॥ . तिहि अवसर लक्ष्मीनिधि आयो।साराजारी चार करायो । लक्ष्मीनिधि पुनिपानि पसारी मिल्यो मुदिततहँ दूलह चारी॥ यहि विधि भयो द्वार कर चारा । भरयो भुवन आनंद अपार ॥ शतानंद तब वचन उचारा ! सुनु वशिष्ट गुरु गाधिकुमारो॥ आयो अव लग्नहु कर काला | मंडप तर वरचलहिं उताला || (दोहा) तह वशिष्ठ वोल्यो हरषि सुनहु राज सिरताज । इलह सहित पधारिये, मंडर तर सुख काज ॥६॥ शतानंद विनती करत, लगन गई अब आय । बयाह बार के अब, चलहिं राम-जुत भाय॥६६॥ RANG