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पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/१८१

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रामखयंवर। जामिनि जाम जाति जिय जानी। बोल्यो वचन वशिष्ठ विज्ञानी सुनहु विदेह लग्न अव आई । कन्यादान देहु सुख छाई ।। जनक तनक अप होइ न देरी । पाणिग्रहण यहि लग्न निवेरी।। सुनत विदेह नेह भरिभारी । धरी कनकमनि मंडित थारी तिहि मह भरयो सुगंधित नीराम लीन्ह्योनिज कर कुसमतिधोरा।। कुंकुम रंगित तंदुल धरिकै । लै जानकी अंक मुद भरिकै॥ रानि सुनैना गांटिहि जोरो। सो ढारति जल प्रीति न थोरी ॥ (दोहा) पढ़ि सुमंत्र यहि भाँति ते, छोडि दियो जल थार। . सुनपुर नरपुर नांगपुर, माच्यो जयजयकार ||३|| (चौपाई) लगे वजावन बाज घराती। गाय उठी तिय जुरी जमाती ॥ यहि विधि पाणिग्रहण तिहि काला।करत भयो सिय को रघुलाला तब उर्मिला क बैठाई । लै कुस अच्छत निमिफुलराई। पदिक मंत्र सुता कर कंजू । धरि लछमन कर पंकज मंजू ॥ सलिल सुनैना कर ढरवाई । दई लपन उर्मिला सुहाई ।। दई भरत मांडवी कुमारी । जनक अनुज कुशकेतु सुखारी पदि सुमंत्र संकल्प समेतू । दिय श्रुतिकीरति कह कुशकेतू। श्रुतिशीरति रिपुदमन लजाई । बैठे निज श्रासन महं जाई । (दोहा) यहि विधि चारिहु चरन को, चारिह वधुन सुहाय । | पाणिग्रहण करवाय करि, प्रमुदित निमिकुलराय HEER