पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/१८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रामस्वयंवर। दुलहिनि दुलह को सही, गांठ जोरि बैठाय । जुत कुटुंब सानुज जनक, लगे पखारन पाय HREED (कवित्त) पद्मराग जटित सुजान रूप धार धरि, सलिल सुगंध __ मरि जनक सुनैना है। पद अरविंद रघुनंद के अनंदमरे, धावत करन द्वंद्व नीर भरे नैना है। जौन पद-जन विधि,धारयो है- कमंडलु में, शंभु जटामंडल यखंडल सचैना है। स्वर्ग में मंदाकिनो पताल भोगवती नाम रघुराज भागीरथी भू मैं ज्ञान- पेना है ॥१०००॥ (छंद गीतिका) निज भाग्य धन्य बिचारि सुर मुनि राम पाय पखारिके। सिर नाय अस्तुति करत बहु विधि मधुर बचन उचारिकै ।। मांचरि चिलोफन हेत सब उमगे अमित अमिलाप ते। सीतारमन सीता-सहित निरखत पलक परमापते ॥१॥ तव शतानंदहि कह्यो रघुकुलगुरु गिरा सुखछामिनी । अब भाँवरी करवाइये पुनि अधिक-योतति जमिनी॥ -सुधि शुतानंद सहर्ष करवावन लगे घर भांवरी। ठाढ़े भये रघुवं समनि तिमि जनक भूपति डावरी ॥२॥ वेदी विभावसुजन भूपहि मध्य करि मग राहने। लागे फिरन फेरी फदित फटिकै फरल मनमोहनै। जबलोंपरी प्रय भाँवरी हसलों सिया आगृ.चली। पनि चारि भाँवरि देत में से राम आगू छवि भली ॥३॥