पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/१८३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रामस्वयंवर। यहि भाँति सप्तपदी कराय कुमार गैातम को सुखी।..... घेदी निकट ठाढ़ो कराया राम सीताससिमुखी॥ लाजा परोसन लाल लक्ष्मीनिधि करायो करन से। कीन्हें निछावर सकल जन पर बधू रतनाभरन से 18 जिहि भांति रघुपति भांवरो लाजा परोसनहूँ भयो। तिहि भांति तीनहुँ बंधु भावरि चार विधिवत है गयो। • तव जाय रघुपति निकट लक्ष्मीनिधि कह्यो मुसक्यायकै दीजै हमारो नेग जो हम कहहिं अब चित चाय कै॥५॥ (दोहा) . जनक-ॉवर वोल्यो हरषि यही नेग मुहि देहु। पद अरविंद सरंद को, मन मलिंद करि लेहु ॥६॥ एवमस्तु कहि राम तह, निज गल की मनिमाल । द्रुत उतारि पहिराय दिय, लालहि किया निहाल ॥७॥ (चौपाई।) अवसर जानि सहित निज भ्राता।उठ्यो विदेह विनोद अधाता कौशलपति को पूजन कीन्ह्यो । हय गय वसन विभूषन दीन्ह्यो।। स्पंदन सिविका साजि अनेका|भाजन विविध भाँति लविवेका बोल्या पुनि विदेह कर जोरी । परिचारिका दारिका मारी। भाग्य विवस तुम्हरे घर जाही। तजि खेलन जानें कछु नाहीं ॥ इतते सुख उत विभवमहाना । पै सिसु भाव कळू नहिं ज्ञाना। रहीं .कुमारी प्रानपियारी । भई सफल सुतघधू तिहारी।। प्रेममयी मिथिलाधिप बानी । सुनि बोल्यो दशरथ भतिखानी