पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/१८४

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.१६८ रामस्वयंवर। पुत्रवधू पुनि आप कुमारी । को इनते अब मोहिं पियारी। नग्न पूतरी सरिस कुमारो। बसिह सदन सदा सुख भारी॥ (दोहा) . . राजन देहु रजाय अब, जनवासे कहँ जाऊँ। निसा असन कुवरन सहित,करन हेत चलि लाऊँ ॥१३॥ (चौपाई) सह्यो विदेह आप पगु धारो। वाकी कछु कुहबर कर चारो ।। चार कराय नुतन पठवैहौँ । अव नहि कछू विलंब लगैहौं। बालकनीद विवस अलसाने । किमि करिह। बिलंब जिय जाने। . सुनि मिथिलेश वचन अवधेशा। उठ्यो प्रमोदित सुमिरि गणेशा॥ मिलि मिथिलेशहि वारहिवारा करि प्रणाम मुनिजनन उदारा॥ । विश्वामित्र वशिष्ठ समेतू । चल्यो भूप जनवास निकेतू ।। इत भूपति जनवासे आयो । शतानंद उत बचन सुनायो।। सखी करावह सब यहि बारा। सेंदुर सोस बहोरन चारा॥ (दोहा) • लस्रो सयानी जाय तब, कह्यो बचन रस पूर। कर लाल निज पानि से, सियहि सीस सिंदूर ॥१८॥ (सवैया) त्यामल पानि पसारि लिया-सिर सेंदुर देन लगे रघुराई । ता छन की सुखमा लखिकै सखि सों उपमा सखि एक सुनाई ॥ श्रीरघुराज बिलोकु नई मृदु, मांग से देवनदी दुति भाई.। भारती धार लिहे जमुना मिलि,साँची गारी त्रिवेनी बनाई॥१६॥