पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/१९६

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२८०. रामस्वयंबर । ताते नुदिवस पूछि वारिन विदा करो महराना। अब इतनै अवशिष्ट मापको सकल सजाव? साजा ॥११॥ शतानंद के वचन सुनत नृप राम वियोग बिचारी। रह्यो दंड द्वैक्छुक को मुख नवन वहावत वारी ।। जस तस कै धरि धीरज नृप उर है पानंद सो छो। कह्यो वचन लुनि करहु जया मन मोहिं काह अब पूछो। अनुचित फछु न विवाह अंत में होती सुता विदाई। नहिं नववधू यसति नैहर में रोति सदा चलि आई ।। कह मिथिलेश करहु जस भावै शतानंद तुम ज्ञाता । सुनिभूपति के वचन उठ्यो मुनि बोल्यो सचिव विख्याता॥ सचिव सुदावन आदि गये तह दिय सासन मुनिराई । वधुन विदा की साज सजाबहु काल्हि सुदिन सुखदाई।। अंतःपुरहि जोय गौतमसुत बिदा स्वरि खुलि गाई। इहरि उठ्यो रनिवास लकल सुनि जनुसुख दियोगमाई ॥ (दोहा) फैलत फैलत फैलिग, खबरि नगर चहुँ ओर। . करत फाल्हि भूपति बिदा, चलन चहत चितचोर॥११५॥ (छंद चौवोला) • जवते शतानंद अंतापुर सीय. विदा मुख भापे । 'तवते लय रनिवाल हुलास निशा विरचिहि मापे ।। जाके जीन पियारि वस्तु घर देहि जानकिहि ल्याई । सरबह देन चहें जित बाहित प्रेमविवस अकुलाई ॥१६॥