पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/१९८

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रामस्वयंवर। आवत देखि विदेह कुमारा। उतरि तुरंगन ते यक बारा॥ किये प्रणाम नाम निज लीन्हें । भूप अथोचित आसिष दीन्हें । कुशल प्रश्न पूछ्यो सब भाँती। राम देखि भई सीतल छाती ॥ (दोहा) सुरभि एल तांबूल लै, नृप कीन्यो व्यवहार । जथाराम तिमि सच सखन, मानि कियो सत्कार ॥१२॥ (छंद गोतिका) तिहि काल श्रीरघुलाल बचन रसाल कह कर जोरिक। नयननि नवाय सुछाय जल मानहुँ सवन चित चोरिक। तुम अवधपति सम मम पिता हम अहैं बालक रावरे । जो भयो कुछ अपराध तौ प्रभु छमिय गुनि निज डावरे॥१२७॥ अब चलन चाहत अवध को अवधेश संजुत साहनी। मोहि विदा मांगन हित पठायो प त है दिलदाहनी। जो नाथ देहु निदेस तौ जननी चरन चंदन करें। . अब जायअंतहपुर सपदि निमिकुल निरखि आनंद भरी॥१२॥ सुनि प्राणप्यारे के वचन विलख्यो विदेह महीप है। गद्गद गरी कुछ कहि न पावत वचन पग्म प्रतीप है। अंसुवानि ढारत जोरि कर वोल्यो वचन मिथिलेस है। तुम जाहु अस किमि कट्टै मुख दृग ओट होत फलेस है।।१२६॥ जस होइ राउर मन प्रसन्न निदेस जस अवधेस को। सो करहु सुरति न छाँडियो निज जानि यह मिथिलेस को । सुनिकै विदेह निदेस सहित सनेह तिन सिर नाइकै।