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पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/२५३

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२३७
रामस्वयंवर।

रामखयंवर। २३७ अस कहि कियो धनुप टंकोरा । भरो भयंकर भू महं सोरा ॥ सुनि टंकोर सोर अति घोरा । तिरछै चितै लपन की ओरा ॥ सिंहनाद करि रावा धायो । निकट आय अस वचन सुनायो । अरे बाल धरि दे धनु वाना । भागु भागु र निज प्राना ।। रामानुज बोल्यो मुसम्याई । बदसि वचन विन वलहि दिखाई ॥ रावण धनुष काटि रनधीरा । हन्यो ललाट माह कर तीरा॥ घले भाल ते रुधिर पनारे । उठ्यो बहुरि सारथी हकारे ॥ जीतत नहिं लछिमन ते देखी । ब्रह्मदंड लै शक्ति विसेखी ॥ उठत धूम निकसतमुख ज्वाला । तज्योलपन पैशक्ति विसाला | लागी लछिमन के उर आई । मूर्छित भयो भरत-लघुभाई ॥ (दोहा) लपन विकल लखि समर महँ, धायो पवनकुमार। हन्यो जोर भरि मूठि तिहि, गिरिगो खाय पछार ॥४८॥ (चौपाई:) लियो उठाय लपन हनुमाना । फूलहु ते लघु लग्यो महाना । पवननुवन लै लछिमन काहीं । आयो रघुकुल-भानु जहाँहीं। प्रभुहि विलोकत शक्ति परानी | गई दशानन निकट महानी ॥ निरुज निहारि लपन कह झीसा । वोले सब जय जयति अहीसा ॥ देखि कुसल लछिमन कोरामा। आपुहि करन चले संत्रामा ।। गहि कोदंड. प्रचंड अखंडा। दशरथ-सुवन चीर परिवंडा ।। . .. (दोहा) , . • दशमुख समर पयान लखि वोल्यो पवनकुमार। मोर