पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/२६७

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रामस्वयंवर।

रामस्वयंवर। अवनी अकाउहु दिलन विदितन रहे सायक छाय:। दोउ लरत कहुं सुरिजात कहुं विलगात रोष बढ़ाय ॥५८२|| तिहि काल तजि सर चारि वेध्यो लपन तासु तुरंग । तजि भल्ल एक प्रवल्ल काटगे सूतसिर मधि जंग॥ घननाद अति अविपाद पग सो गयो वाजिन वाग। चालत तुरंगन सरन घालत कपिन अवरज लाग॥५३॥ (कवित) प्रबल प्रचंड पुनि लीन्यो वान रामानुज, दुराधर्ष दुसह दुरासद है ईस को कै दियो प्रयोग त्यो महेंद्र अस्त्र मंत्र पढ़ि, वोल्यो वैन के भरोस राम जादीस को॥ सत्यसंध धरमधुरंधर जो रघुराज, विक्रम अखंड होय जो पै जानकीस को॥वान तो हमारौयहि वार को पवारो काटि डारै बिन बार अब मेघ. नाद-सीस को ॥५८॥ (दोहा) अस कहि छोड्यो लपन सर, लग्यो कंठ मह जाय । . . . इंद्रजीत के सीस को, दीन्यो काटि गिराय ॥५८५॥ .. . (छंद चौधोला) . भये विसल्य विरुज वानर सव ओज तेज वल भारी । ... पारहिवार सराहत लषनहिं अजय सत्रु संहारी॥ '. कोउ मंत्री सुनि इंद्रजीत बध रावणसभा सिधारी । - दियो सुनाय निशाचरराजहि गयो आप सुत मारी ॥५८६॥