रामस्वयंघर। पुत्रेष्टि यज्ञ। . (छंद चौवोला) पुनइष्ट हम करव अथर्वन मंत्र सिद्धि जेहि माहीं। अति सुकुमार कुमार चार प्रभु दैहें हठि तुम काहीं॥ अस कहि ऋषिन बोलि श्रृंगी ऋषि पुत्रइष्ट आरंभा । लाग्यो करन वेदविद संजुत हवन किया बिन दंभा ॥६॥ पुत्रष्टि सुतहीन अवधपति करन लग्यो तेहि काला । हवन करत विधि मंत्र सहित सँगी.ऋषि तेज विशाला ॥ तहं यजमान भूप के सन्मुख हवनकुंड ते प्यारो। . 'अतुलित प्रभा महावल सुंदर तीनि लोक उजियारी ॥७॥ श्याम शरीर अरुन अंवर तनु हग विशाल अरुनारे । सोहत हरित मूछ सिर केस सुबेस रोम तनु सारे। भयो उदित मन बिमल दिवाकर दिव्य विभूपन धारी। उन्नत शैल भंग सम अंग अभंग हेरि हिय हारी ॥१८॥ दर्पित शार्दूल सम विक्रम लक्षन लक्षित आछे। ' कर में कनक थार लीन्हें कटिव नक काछनी काछे। परम दिव्य पायस सौ पूरित रजत पात्र ते ढांपी। मनहुं अंक कीन्हे निज नारी प्यारी छवि में छापी ॥ पायस-चरी पुरुप थारी लै दोऊ पानि पसारे । कह्यो वचन भूपति दसरथ सों मानहु बजत नगारे॥ .
पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/३५
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