"रामस्वयंवर। दियो अरध पायस कौशल्यहि जौन अरघ रहि गयऊ । तामे अरध सुमित्रहि दीन्ह्यो अरध जुगल करि दयऊ ॥ माधो दियो कैकयी को नृप पुनि आधा जो बाँचा। वहुरि विचारि सुमित्राहि दीन्ह्यो तासु नेह मह रांची ॥१०॥ कौशल्या, कैकयी, सुमित्रा पायस भोजन कीन्ह्यो । भानु कृसानु समान तेज सव उदर गर्भधरि लीन्हो॥ गर्भवती युवती अपनी लखि पूरनकाम नरेसा । घसत भयो सानंद अवधपुर सरजू दच्छिन देसा ॥१७॥ (दोहा) देवन हित भूपति भवन, किय हरि गर्भ निवास । को..दयालु अस दूसरा, जैसा रमानिवास ॥१०॥ वाल्मीकि कथा । . (सोरठा) रामायण को मूलं, वाल्मीकि-नारद-मिलन । प्रश्न कियो अनुकूल, उत्तर दीन्ह्यो देवऋपि ॥१६ . .(छंद चौवोला) वाल्मीकि सुनि नारद मुख ते वचन परम सुख पायो। करि अर्चन उपचार अष्ट जुग चरनकमल सिर नायो । लहि महर्पि-सत्कार अपार.प्रमोदित देव ऋपोशा। हरिगुन गावत बीन बजावत चल्यो सुमिरि जगदीशा॥११०॥ जानि प्रभात, महर्षि गया-मजन हित तमसा तोरा ।
पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/३७
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