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पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/८६

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रामस्वयंवर। (दोहा) धावत आवत भोम भट, समर सुवाहु सुबाहु । संघान्यो सर भानुकुल, कुमुद नवल निसिनाहु ॥३८॥ (कचित्त) परम कराल मानों कालहू को काल व्याल, मुनिन निहाल कर तेज आलवाल है । अतिहि उताल बढ्यो पावक को मंत्रजाल, उठी ज्यालमाल डग्यो दिग्गज को भाल है|चंद्रमाल, चारिमाल, लोकपाल भे विहाल, हल्ला परयो खर्ग ते रसातल पताल है । सूखे ताल चंदगाल बिह से लपनलाल, रघुराज जवै सर साज्यो रघुलाल है ॥३८॥ कोटि पविपात सों बधात चार सार छयो, अवनी गगन उतपात अति छायगो । दिसि आदात होन लाग्या है प्रभात दाह, उल्कापात वज्रपात घरनि देखायगो । भने रघुराज राम सायक प्रबल सत्रु, छाती को विदारि के निपंग पुनि आइनो ॥ सहित सनाह भरी समर उछाहु महा, बाहुसे। सुबाहु वारि वुल्ला-सों विलायगो ॥३८६॥ (दोहा) समर कोपि रघुवंसमनि, जानि मुनिन बढ़ रोग। निसिचरनिकर-विनास हित किय पवनास्त्र प्रयोग॥३८७॥ (छंद तोटक) जब छोडि दियो पवनास्त्र हरी । प्रगटे सर लाखन ताहि धरी। सर मुंडन मुंडन छाइ गये। रजनीवर पीर बिलाय गये॥३८८ . अवक्षेप रहे रितु जे सिगरे । इक एकन पै सर लाख गिरे।