सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/९८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

, रामस्वयंवर। भनत परस्पर वचन सकल ऋपि नृप विदेह बड़वारी ॥४८॥ कंचन कोट कँगूरे कलसा गोपुर गुर्ज दुभाग। । अति सुंदर मंदिर उतंग वर कनक सुवनक केवारा॥ शशिशाला अंतहपुर शाला शाला सभासदन के । गजशाला तुरंगशाला वर निर्मित मनहुँ मदन के ॥४५॥ . (सवैया) चांदनी सी चमकै चहुँ ओर तनो चुनी चांदनी चारु महाई । चित्रित चित्र विचित्र बने चितये जेहि चित्त गहै चकिताई ॥ कौन कई मिथिलेश कि संपति शक देखि लहे लघुनाई। 'श्रीरघुराज जहां जगदंव अलंय भई तहँ कौन बड़ाई ॥४६॥ . (छंद हरिगीतिका) - : कहुँ धरनिपति सैना परी फहरत अनेक निसान हैं। हय गय अनैशन विविध स्यंदन सिविर विसद बितान हैं। नौवत झरत बहु नृपति डेरन दुंदुभी धुनि खै रही । कहुँ नचत नट कहुँ बजत बाजन वारतिय गति लै रही ॥ ४६॥ विश्वामित्र-विदेह-मिलन

. .

(दोहा) अभिलापन लाखन मनुज, अवलोकनि धनु यश । •, आये मिथिला नगर मह, अशहु तज्ञ कृतज्ञ ॥४६२॥ - जथाजोग्य भूपन जनक, कीन्ह्यो अति.सतकार। निमिकुल-कमल-पतंग को, छायों सुजस अपार ॥४६॥