पृष्ठ:संक्षिप्त हिंदी व्याकरण.pdf/११०

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{ १०० ) कारको के लक्षण ( १ ) क-कारक सज्ञा { वा सर्वनाम ) के उस रूप को कहते हैं जिसमें किया के कत्तई ( अथवा उद्देश्य ) का बोध होता है; जैसे लड़का जाता है। लड़की ने काम किया । वह अभी तक नहीं आया ! पुस्तक लिखी जायगी । जिस कक्ष के लिंग, वचन पुरुष के अनुसार क्रिया के लिंग-वचन पुरुप होते हैं वह प्रधान कता कहलाता है, और उसके साथ कोई चिह्न नहीं आता । जिस कत के लिंग-वचन-पुरुष के अनुसार क्रिया के लिग-वचन पुरुप नहीं होते वह अप्रधान कर्ता कहलाता है, और उसके साथ ‘ने' विभक्ति आती है । ( ने चिह्न के उपयोग के लिए अ० २२१ देखो ।) (२) जिस वस्तु पर क्रिया का फल पड़ता है उसे सूचित करनेवाले संज्ञा ( वा सर्वनाय ) के रूप में कर्म कारक कहते हैं; जैसे, लड़का फल तोड़ता है । नौकर ने कोठा झाड़ा । हम उसको धुलावेंगे । जब कर्म निश्चित रहता है तब उसके साथ कर्मकारक की को विभक्त आती है; जैसे लड़का फल को तोड़ता है। नौकर ने कोठे को झाड़ा । जो कर्म वाक्य में उद्देश्य होकर आता है, वह कत-कारक में रहता है। जैसे, पुस्तक लिखी जायगी । नौकर काम पर भेजा गया था । करण-कारक संज्ञा के उस रूप को कहते हैं जिससे साधन (द्वारा) का बोध होता है; जैसे नौकर कुल्हाणी से लकड़ी काटता है। लड़के ने हाथ से फल तोड़ा ! धन परिश्रम से प्राप्त होता है ।। (४) जिस वस्तु के लिये क्रिया की जाती है उसे सूचित करनेवाला सृज्ञा को संप्रदान-कारक कहलाता है; जैसे, राजा ने ब्राह्मण को धन दिया । गुरु शिव्य को गणित पढ़ाता है ! वे धूमने को गए हैं । जब वाक्य में कर्म और संप्रदान, दोनो कारक आते हैं तत्र कम- कारक के साथ को' विभक्ति नहीं आती; जैसे सिपाही ने लड़की का को सौंपा । वे सब को बात समझाते हैं । (५) अपादान-झारक सज्ञा का वह रूप है जिससे क्रिया का