पृष्ठ:संक्षिप्त हिंदी व्याकरण.pdf/१११

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( १०१ ) अलगाव पाया जाता है; जैसे पेड़ से फल गिरा। नौकर गाँव से आवेगा । गाड़ी दिल्ली से चलेगरि ।। - करण और अपादान, दोनो कारको की विभक्ति से है, पर उसके अलग-अलग अर्थ हैं; जैसे, सिपाही ने तलवार से शत्रु को शिर धड़ से अगल कर दिया । इस उदाहरण में तलवार से करण कारक और

  • धड़ से अपादान है।

| ( ६ ) संज्ञा के जिस रूप से उसका संबंध दूसरे शब्दों के साथ | सूचित होता है उसे संबंध कारक कहते हैं; जैसे, राजा का पुत्र, लड़के की पुस्तक, घर के लोग। संबध-कारक का अर्थ विशेषण के समान होता है; जैसे, घर का काम = घरू काम, जंगल का जानवर = जगली जानवर, महाजन की चाल = महाजनी चाल । सबंध-कारक विभक्तियाँ (का-के-की) संबंधो शब्द (विशेष्य) के लिंग वचन और कारक के अनुसार बदलती हैं । इस कारक का संबंध क्रिया से नहीं होता, किंतु किसी दूसरे शब्द से होता है। (७) अधिकरण कारक संज्ञा के उस रूप को कहते हैं जिससे क्रिया का आधार सूचित होता है; जैसे, लोटे में पानी है। बंदर पेड़ पर चढ़ा, मैं यह बात मन में रक्खेंगा । यह काम एक वर्ष में हुआ । | आधार दो प्रकार का होता है--(१) अभ्यंतर ( भीतरी ) और (२) बाह्य (बाहरी) । पहले की विभक्ति में और दूसरे की 'परहै । नोनों प्रकार के आधारो स स्थान और काल का अर्थ सूचित होता है। (८) संज्ञा के जिस रूप से किसी को पुकारने या चेताने का बोध होता है उसे संबोधन-कारक कहते हैं; जैसे, लड़के, इधर आ । हे भाइयी, मेरी बात मानो । संबोधन कारक का संबंध क्रिया अथवा किसी दूसरे शब्द से नहीं " होता है इसकी कोई विभक्ति भी नहीं है; इसलिये इसके पहले कोई एक विस्मयादि बोधक लगा दिया जाता है ।