पृष्ठ:संक्षिप्त हिंदी व्याकरण.pdf/११२

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( १०२ ) १३---विभक्तियों के बदले किसी-किसी कारक में संबंध-सूचक आते हैं; जैसे; करण-द्वार---जरिए, कारण, मारे ।। संप्रदान-प्रतिदिन, हेतु, निनिच, अर्थ, वास्ते । अपादान---अपेक्षा, बनिस्बत, सामने, आगे । अधिकरण---बीच, मध्य, भीतर, अंदर, ऊपर । १८४--विभक्तियो और संबध-सूचक में अंतर है कि विभक्तियो सुज्ञा सर्वनाम के साथ आकर सार्थक होती हैं; परंतु सबंध-सूचक स्वयं सार्थक रहते हैं, क्योंकि वे स्वतंत्र शब्द हैं। *तलवार से शुब्द के साथ से विभक्ति आई; पर तलवार के द्वारा वाक्यांशु के साथ द्विारा शब्द आया है, यद्यपि दोनों का अर्थ समान है । १८५---किसी संज्ञा या सर्वनाम का अर्थ स्पष्ट करने के लिये जो शब्द आता है उसे उस संज्ञा या सर्वनाम का समानाधिकरण शब्द कहते हैं; जैसे मेरा भाई मान आज आया है । इस वाक्य में *मोहन 4भाई संज्ञा का समानाधिकरण शब्द है। इसी प्रकार ‘राजा दशरथ अयोध्या में राम करते थे इस चाय से राजा” शब्द “दशरथ सज्ञा का समानाधिकरण है। समानाधिकरण शब्द उसी कारक में आता है जिसमें मुख्य संज्ञो । या सर्वनाम रहता है। ऊपर के उदाहरण में मोइन” और “राजा' संज्ञाएँ कर्चा कारक में हैं; क्योकि मुख्य सज्ञाएँ *भाई” और “दशरथ कची कारक में आई हैं। अभ्यसि १-~-नीचे लिखे वाक्यों से संज्ञाओं और सर्वनामों के कारक बताओ। घोड़ा जगल में भाग गया । लड़के पतंग उड़ाते हैं । हम मोहन को पहचानते हैं । पानी से पौधे बढ़ते हैं । हिंदी के प्रसिद्ध कवि तुलसीदास ने अनेक ग्रंथों का निर्माण किया है। एक दिन मनुष्य मिट्टी से झोपड़ी