१ १३३ ) थे संज्ञा क्रिया के साधारण रूप में रहती हैं और संबोधन को छोड़ शेष कारी के एक वचन में आती हैं। इनकी कारक रचना हिंदी आकारांत पुल्लिग संज्ञा के समान होती है । नेवाला अ या हैं। लिखनेवाले को बुलाओ । नेवाले अा गर् । पसलेवाल जायगी । छानेवाले मजदूर को भेजे । गाडी वाला है। २२६-क्रियार्थक संज्ञा के विकृत रूप में वाला” ( हारा ) जोड़ने से कतृवाचक संज्ञा बनती है। इसका उपयो। विशेषण के समान भी होता है। कभी भी इससे भविष्यत्काल की भी अर्थ पाया जाता है । इनका ग आकारांत विपण के समान विशेष्य के लिंग वचन के अनुसार ब्रट्झता है ।। बहता जानी हवा से साफ होता हैं । चलती हुई गाड़ी में मत बैठो। उसने उड़ते हुए पक्षी का मारा। २२७०-क्रियार्थक संज्ञा के अंत्य “ना” का लोप करने से जो अंश बचता है उसे धातु कहते हैं। जैसे, नाना-ना; करना-कर । धातु के अंत में “तो” झाइने से बाल-कालक कृदंत विशेष बनता है। यह विशेषण विशेष्य के लिग बचन के अनुसार बदलता है । इसके साथ बहुधा हुआ शव्द रोड़ देते हैं जिनमें मुख्य शब्द के अनुसार रूपांतर होता है। बचा हुआ अन्न गरीबों को दिया गया । मनुष्य को खुले मैदान में घूमना चाहिए।