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(४७)
- अंजन थिर न रहत अंखियन में,
- कर कपोल भये कारे ।
- कंचुकि-पट सूखत नहिं कबहूँ,
- उर बिच बहत पनारे ।
- आँसू सलिल भये पग थाके,
- वहे जात सित तारे ।
- 'सूरदास' अब डूबत है ब्रज,
- काहे न लेत उबारे ॥
- अंजन थिर न रहत अंखियन में,
ताल तीन मात्रा १६
स्थाई
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