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पृष्ठ:संगीत-परिचय भाग २.djvu/४१

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( ४८ )

अन्तरा





सं सं सं —
ह त अं खि

सं ͢͢गं रेंसं नी॒सं रेंसं
का — — —

ग॒ — रे स
ख त न हिं
भ — यो प

_गं — रें सं
ना— — —





रें नी॒ सं —
य न में —

नी॒सं नी॒ध॒ प —
रे — रे —

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म — प प
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ध॒ प ध॒ सं
क र क पो

प सं नी॒ सं
क न चु कि

प प ध॒ सं
उ र बि च


ध॒ — नी॒ ध॒
थि र न र

— सं सं रें
— ल भ ये

ध॒ प म प
प ट सू —

सं सं रें सं
ब ह त प



भजन मीरा

राग आसावरी

तीन ताल
मैं तो साँवर के रंग राची।
साजि सिंगार बाँधि पग धुंघरू,
लोक-लाज तजि नाची ॥१॥
गई कुमति लई साधु की संगति,
भगत रूप भई साँची ।
गाय गाय हरि के गुण निस दिन,
काल व्यालसुं बाँची ॥२॥