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अन्तरा
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राग आसावरी
तीन ताल- मैं तो साँवर के रंग राची।
- साजि सिंगार बाँधि पग धुंघरू,
- लोक-लाज तजि नाची ॥१॥
- गई कुमति लई साधु की संगति,
- भगत रूप भई साँची ।
- गाय गाय हरि के गुण निस दिन,
- काल व्यालसुं बाँची ॥२॥