पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/१११

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  • सङ्गीत विशारद *

भावार्थ:- १ सदष्ट-दात पीसकर गाने वाला। २-उद्धृष्ट-निरस, जोर से चिल्लाने वाला। ३-सूत्कारी-गाते समय सूत्कार करने वाला । ४-भीत-भयभीत होकर गाने वाला । यानी जो डरते-डरते गाये। ५--शकित-आत्म विश्वास रहित, घबराकर जल्दबाजी से गाने वाला। ६-कम्पित-कॉपती हुई आवाज़ से गाने वाला । कराली-भयकर मुंह फाडकर गाने वाला । -विकल-जिसके गाने मे श्रुतिया कम या अधिक लगजाती हैं, अर्थात् जिमके स्वर अपने उचित स्थान पर नहीं लगते। -काकी-कौए के ममान कर्कश आवाज वाला। १०-विताल-बेताला गाने वाला । ११-करभ-मु डी-3 ची करके गाने वाला। १२-उद्बड-भेड़ की तरह मुंह फाडकर गाने नाला । १३-मावक-गले और मुंह की नसें फुलाफर गाने वाला । १४-तुम्बकी-तुम्बे के ममान मुंह फुलकार गाने वाला | १५-वक्री-मुडी टेढा करने वाला। १६-प्रमारी-हाथ पैर फैक-फेंक कर या हाथ पैर पटक कर गाने वाला। १७-निमीलिक-पास बन्द करके या आसे मींचकर गाने वाला। १८-विरस-जिसके गाने मे रस न हो अर्थात् निरस गाने वाला। १६-अपस्वर-जिमके गाने में वर्जित स्वर भी लगजाये । २०-अव्यक्त-गाते समय जिसका शब्दोच्चारण ठीक न हो । २१-स्थान भृष्ट-जिसकी आवाज़ योग्यस्थान पर नहीं पहुंचती। २२-अव्यवस्थित वेढगे तरीके से यानी अव्यवस्थित रीति से गाने वाला। २३-मिश्रक-राग मिश्र करके ( रागो को मिलाकर ) गाने वाला । २४-अनवधान-लापरवाही से गाने वाला। २५-सानुनासिक-नाक के स्वर से गाने वाला, अर्थात् जो गाते समय नाक से आवाज निकाले । .