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पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/१३३

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  • सगीत विशारद *

निपाट तक जाते हैं, फिर तार पडज को छूकर नोचे मध्य पडज पर श्राफर स्थाई समाप्त करते हैं। स्थाई भाग का आलाप अधिकतर मन्द्र और मध्य सप्तकों मे ही चलता है। (२) अन्तरा- इसके बाद मध्य सप्तक के गवार या पचम स्वर मे अन्तरा का भाग शुरू करते हैं, और तार सप्तक के पहज पर पहुँचकर अनेक प्रकार के काम दिखाते हैं, अर्थात् इस स्थान पर विभिन्न ताने विभिन्न प्रकार से वहीं समाप्त करते हैं । फिर धीरे-धीरे उतरते हुए मध्य पहज पर आकर मिल जाते हैं। इसमें मींड और कम्पन का काम भी सूर दिखाते हैं । (३) संचारी-- -- तीसरा भाग सचारी का आता है । इसे प्राय सा, म, प इनमें से किसी भी स्वर से प्रारम्भ करके मध्य पंचम या मध्य पड़ज पर ही आकर समाप्त किया जाता है। क्यों कि सचारी मे प्राय तार सप्तक के काम नहीं दिग्गाये जाते। सचारी मे गमों का प्रयोग अधिक दिखाई देता है, क्योकि सचारी में स्थाई भाग की पुनरावृत्ति भी सशोधित रूप मे हो जाती है। सचारी के बाद फिर स्थाई का आलाप नहीं करते, बल्कि एक दम आभाग आरम्भ कर दते हैं। (४) श्राभोग- आभोग का विस्तार प्राय अन्तरा के विस्तार के समान ही करते हैं, अत इसे अन्तरा की पुनरावृत्ति का ही सशोधित रूप समझा जाये तो अनुचित नहीं। इसमे तीनों मतमों का प्रयोग किया जा सकता है, और तार सप्तक में गायक अपने गले के धर्मानुसार जितना ऊँचा चाहे जा सकता है। इममे अति द्रुतलय हो जाती है । पालाप में लय की गति- लय की दृष्टि से उपरोक्त चारों भागो के आलाप में इस प्रकार चला जाता है कि (१) स्थायी मे विलम्बिन लय के साथ आलाप चलता है । (२) अन्तरा मे आलाप करने का समय आता है, तो मध्यलय करदी जाती है और तानों का प्रयोग प्रारम्भ कर दिया जाता है। बीच-बीच मे छोटी-छोटी ताना की सहायता से आलाप के काम में सुन्दरता पैदा की जाती है और तीनों सप्तको मे आलाप का काम दिसाकर स्थायी और अन्तरा दोनों के काम इस भाग में दुवारा दिसाये जा सकते हैं। (३) सचारी भाग मे लय द्रुत हो जाती है और तीनों सप्तकों मे गमक तथा लयकारी का प्रदर्शन करते हुए आलाप चलता है। (४) आभोग में लय को और भी द्रुत करके, अन्तरा के भाग को विविध प्रकार से दुहराते हुए गमक का प्रयोग जारी रखा जाता है और गायक जितनी तेजी से गा सकता है, अपना सपूर्ण कौशल दिग्पाते हुए तबले या पसावज वाले के साथ एक प्रकार की प्रतियोगिता उपस्थित कर देता है। इस भाग के नोमतोम के शब्द अति द्रुतलय के कारण तराने का रूप धारण कर लेते हैं। -