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पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/१३४

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  • सङ्गीत विशारद *

१४३ गमक के प्रकार स्वरस्य कंपो गमकः श्रोतृचित्त सुखावहः । तस्य भेदास्तुतिरिपः स्फुरितः कम्पितस्तथा ॥ लीन आन्दोलितवलितत्रिभिन्नकुरुलाहताः उल्लासितः प्लावितश्च हुफितो मुद्रिस्तथा ॥ नामितो मिश्रितः पंचदशेति परिकीर्तिता ।। -संगीतरत्नाकर अर्थात्-स्वरों का ऐसा कम्पन जो सुनने वालों के चित्त को सुखदायी हो, उसे 'गमक' कहते हैं। गमक के भेद १५ हैं:-(१) तिरप, (२) स्फुरित, (३) कम्पित, (४) लीन, (५) आन्दोलित, (६) वलित, (७) विभिन्न, (८) कुरुला, (६) आहत, (१०) उल्लासित, (११) प्लावित, (१२) हुंफित, (१३) मुद्रित, (१४) नामित, (१५) मिश्रित । दक्षिणी सङ्गीत के ग्रन्थों में गमकों के १० प्रकार निम्निलिखित मिलते हैं:- (१) आरोह, १२) अवरोह, (३) ढालु, (४) स्फुरित, (५) कम्पित, (६) आहत, (७) प्रत्याहत, (८) त्रिपुच्छ, (E) आन्दोलित, (१०) मूर्छना । प्राचीन समय में स्वरों के एक विशेष प्रकार के कम्पन को गमक कहते थे । उस कम्पन को प्रकट करने के लिये जो विभिन्न ढङ्ग उस समय प्रचार में थे, उन्हीं का उल्लेख ऊपर के श्लोक में किया गया है । वर्तमान समय में यद्यपि गमकों का प्रयोग प्राचीन ढङ्ग से नहीं होता, तथापि किसी न किसी रूप में गमक का प्रयोग हमारे वाद्य सङ्गीत और मौखिक सङ्गीत में होता अवश्य है । खटका, मुर्की, ज़मज़मा, मोंड, सूत, कम्पन, गिटकरी इत्यादि शब्द गमक की ही श्रेणी में आते हैं। आधुनिक सङ्गीतज्ञ 'गमक' की व्याख्या इस प्रकार करते हैं: जब हृदय से जोर लगाकर गम्भीरता पूर्वक कुछ कम्पन के साथ स्वरों का प्रयोग किया जाता है, उसे गमक कहते हैं। गमक का प्रयोग अधिकतर ध्रुपद गायन में होता है; किन्तु कोई-कोई गायक. ख्याल गायन में भी गमक की.तानें लेते हैं। नोमतोम के आलाप में भी जब अन्तिम भाग द्रुतलय का आता है, तो गमक युक्त तानें ली आती हैं ।