पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/१४७

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  • सङ्गीत विशारद *

६-भैरवी कोमल सब ही सुर मले, मध्यम वादि बखान । पडज जहां मवादि है, ताहि भैरवी जान ॥ राग-भैरवी वर्जित-कोई नहीं आरोह-मा, रेगम, पध, निसा । जाति-सम्पूर्ण अवरोह-मा, निधर, मग, रेसा । वादी-म, सम्वादी-स । परड़-म, ग, मारेसा, धनिसा । स्वर-म शुद्ध, शेपम्बर कोमल गायन समय-प्रात काल । थाट-भैरवी कोई-कोई इस राग में व वादी और ग सम्बादी मानते हैं। यद्यपि इस राग का गायन समय प्रात काल है, किन्तु कुछ सङ्गीतज इसे सर्वकालिक राग मानकर चाहे जिस समय गाते वजाते हैं। कोई-कोई गायक इसमें रे-म-नि इन तीच स्वरी का प्रयोग विवादी स्वर के नाते करते हैं, किन्तु इस कार्य में सावधानी की आवश्यकता है । ७-भूपाली मनि वर्जित कर गाइये, मान थाट कल्यान । ग ध वादी सवादि सों, भूपाली पहचान ।। राग-भूपाली वर्जित स्वर-म, नि थाट-कल्याण आरोह -सा रे ग प, वसा जाति-औडव अमरोह–सा, धप, ग, रे, मा। वादी-ग, मम्बाढीव पक्ड़-ग, रे, साध, मारेग, पग, धपग, रे, सा स्वर-सन शुद्ध गायन समय - रात्रि का प्रथम प्रहर यह बहुत सरल और मधुर राग है। गाते समय इसे शुद्ध कल्याण, जेत कल्याण और देशकार मे बचाने मे कुशलता की आवश्यकता है, यह केवल ५ स्वरों का अपने ढङ्ग का स्वतन्त्र राग है। ८-सारङ्ग (शुद्ध) वर्जित कर गन्धार सुर, गावत काफी अग। दोऊ मनि, सबाद रिप, कहत शुद्ध सारग ।। वर्जित स्वर-ग राग-शुद्ध सारंग थाट-काफी जाति-पाढव वाढी-रे,मम्बादी-प -दोनों म दोनों नि विचार इस प्रकार प्रगट किये हैं - आरोह-सा रे म प मपनिसा अपरोह -सा नि प में पध पमरे निसा पकड-सा, रेमरे, प, मप, निप, मैप, मरे, सा गागनmm..---