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पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/१५८

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  • संगीत विशारद *.

१६७ इस राग की साधारण प्रकृति भूपाली के समान है। मनि यह दोनों स्वर यद्यपि आरोह में ही वर्जित हैं, किन्तु अवरोह में भी इन स्वरों को वर्जित करके बहुत से लोग इस राग को गाते हैं। अवरोह में यद्यपि तीव्र मध्यम भी लिया जासकता है, किन्तु इस स्वर को पंचम से गान्धार तक की मींड़ लेकर दिखाते हैं। जलद तानों में तीव्र मध्यम छोड़ दिया जाता है केवल निषाद अवरोह में कोई-कोई लेलेते है, इस कृत्य से भूपाली की भिन्नता दिखाई देजाती है। प-रे का मिलाप रक्ति वर्धक होता है। इस राग में धैवत स्वर को भूपाली की अपेक्षा कम प्रयोग में लाना उचित है । ३२-गौड़सारङ्ग दोऊ मध्यम लगि रहे, कल्यानहिं के अंग । गध वादी संवादि तें, बनत गौड़सारङ्ग ।। . , राग-गौड़ सारङ्ग वर्जित-कोई नहीं थाट-कल्याण आरोह–सा, गरेमग, पमधप, निधसां जाति-सम्पूर्ण अवरोह-सांधानप, धर्मपग, मरे, प, रेसा वादी-ग, सम्वादी ध पकड़-सा, गरेमग, परेसा । स्वर-दोनों मध्यम समय-दिन का दूसरा प्रहर इस राग में दोनों मध्यमों का प्रयोग होता है। यद्यपि इसमें गन्धार निषाद वक्र हैं किन्तु राग का मुख्य अङ्ग “गरे मग” इस स्वर समुदाय पर आधारित है, इसलिये कई स्थानों पर ग-नि का वकृत्व छिप जाता है। तीव्र मध्यम केवल आरोह में ही लिया जा सकता है। अवरोह में किंचित कोमल निषाद कुशलता पूर्वक ले सकते है । ३३-जैजैवन्ती तीवर कोमल रूप दोउ, मनि के दिये लगाय । रिप वादी संवादि सों, जैजैवन्ति कहाय ।। . थाट-खमाज -जैजैवन्ती वर्जित स्वर-कोई नहीं आरोह–सारे गमप, निसां जाति-सम्पूर्ण अवरोह–सांनिधप, धम, रेगरेसा वादी-रे, सम्वादी-प पकड़-रेगरेसा, निधप, रे -दोनों ग दोनों नि समय-रात्रि का दूसरा प्रहर इसके आरोह में तीव्र गनि और अवरोह में कोमल ग नि लेते हैं, लेकिन कभी-कभी अवरोह में भी तीव्र गन्धार लिया जा सकता है। कोमल ग केवल अवरोह में ही स्वर-