पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/१५९

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  • संगीत विशारद *

ले सकते हैं और यह स्वर नोना और मेरे गरे इस प्रकार रिपभों द्वारा घिरा रहता है । यह राग सोरठ के अगरा है। मन्द पचम और मध्य रिपभ का मिलाप इममे यहुत अच्छा मालुम होता है। ३४-पूर्वी रि ध कोमल कर गाइए, दोनों मध्यम मान । गनि वादी संवादि सों, राग पूर्वी जान ।। " राग-पूर्वी थाट-पूर्वी जाति-सम्पूर्ण वादी-ग, मम्बाढी-नि स्वर-रे व कोमल, टोना मध्यम वर्जित स्वर-कोई नहीं पारोह-मा, रेग, मैप, ध, निसा । अमरोह-सा नि धूप, में, ग, रे मा। पकड़-नि, सारेग, मग, म, ग, रेगरेसा समय-दिन का अन्तिम प्रहर स, ग, प, इन तीन स्वरों पर हम राग की विचित्रता निर्भर है। उत्तर भारत में कोई-कोई सङ्गीतन इममे तीव्र धैरत भी लेते हैं, तो कोई-कोई दोनों धैवतों का उपयोग करते हैं। इस राग के अवरोह मे कोमल म का प्रयोग गन्धार के साथ बहुत सुदर प्रतीत होता है। ३५-पूर्याधनाश्री मध्यम तीव्र लगाय कर, रिध कोमल सुर मान । राग पूरियाधनाश्री, परि सवाद बखान । वर्जित स्वर-कोई नहीं राग-पूर्याधनाश्री आरोह--निरेगमप, धूप, निसा । याट-पूर्वी अपरोह-निप, मंग, मरेग, रेसा । जाति-सम्पूर्ण पकड-निग, मैप, पप, मंग, मरेग, धर्मग, वादी-प, सम्बादी रेसा। स्वर--रेव कोमल, में तीन समय-सायसल। यह राग पूर्वी से मिलता जुलता है, किन्तु पूर्वी में दोनों म यम हैं और इसमें तीव्र मध्यम ही है, इम मेद से यह पूर्वी से बचा लिया जाता हैं। इस राग में मरेग तथा रेनिधूप यह स्वर समुदाय राग दर्शक है। पिचार इम प्रसार प्रगट किये हैं -